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'इंतेज़ार'

क्यों पास आ कर भी थी इतनी दूरी, क्यों दूर रेह कर नई लगती कोई मजबूरी. मिलने को, करने को है इतनी बातें क्यों मिल नई पाए हम क्यों हैं अब मुझ को शिकायतें! बातें शब्दों में जो लिख पाती हूँ होठों से जाने क्यों कह नही पाती हूँ दूरियों में मिलता इक अजीब सुकून हैं मगर इंतेज़ार ख़तम करने का भी इक जुनून है ना ख़तम होने वाला ये सिलसिला है मुझे ज़िंदगी पैर फिर भी भरोसा है मिलना है फिर तुम से इक दिन मुझ को, मगर नया इंतज़ार अभी करना है मुझ को... दौर-ए-इंतेज़ार शायद कभी ख़तम नई होगा, मिल कर तुम से फिर एक बार बिछड़ना होगा. हँसती हूँ मुस्कुराती हूँ जब ये सोचती हूँ इस दौर के भी गुज़र जाने का 'इंतेज़ार' किए जाती हूँ ...... **************************** kyon paas aa kar bhi thi itni duuri, kyon dur reh kar nai lagti koi majboori. milne ko, karne ko hai itni baatein kyon mil nai paye hum, kyon hain ab mujh ko shikayatein. baatein shabdon mein jo likh pati hun, hothon se jane kyon keh nahi pati hun. duriyon mein milta ik ajeeb sukoon hain, magar intezaar khattam karne ka bhi ik junoon hai. na khatta